अर्जुन नृतम (अर्जुन का नृत्य) एक आनुष्ठानिक कला है जिसका प्रदर्शन पुरुष द्वारा किया जाता है और यह केरल के भगवती मंदिर में प्रचलित है। महाकाव्य महाभारत के पांडवों में सबसे वीर भाई अर्जुन एक प्रसिद्ध गायक और नर्तक था और माना जाता है कि उसने देवी भद्रकाली को अपनी भक्तिमय प्रस्तुति से प्रसन्न किया।
अर्जुन नृतम को मयिलपीलि नृतम भी कहा जाता है क्योंकि कॉस्ट्यूम में शामिल है मयिलपीलि (मोर पंख) के बने विशिष्ट परिधान। यह परिधान कमर पर उसी तरह पहना जाता है जैसे कथकली में उडुत्तुकेट्टु। कलाकार के चेहरे हरे रंग से चित्रित होते हैं और वे विशिष्ट प्रकार का सिरोभूषण धारण करते हैं। सारी रात चलने वाला यह नृत्य प्रदर्शन एकल या जोड़े में होता है।
कठोर रूप से ताल (रिदम) आधारित गीत कवित्तंगल कहलाते हैं और उनका संबंध विविध पुराणों (प्राचीन हिंदू ग्रंथ) से होता है। प्रत्येक कवित्तम एक विशिष्ट ताल के अनुकूल रचा जाता है। प्रत्येक गीत के पहले नर्तक उस विशिष्ट ताल की बारीकियों का वर्णन करता है और बताता है कि कैसे इस ताल को नृत्य की गति में तब्दील करते हैं।
नृत्य की विविध गतियां कलरिप्पयट्टु तकनीक के समान होती हैं।चेंडा, मद्दलम, तलचेंडा और इलत्तालम (झांझ) जैसे वाद्ययंत्रों का वादन होता है।