तोलप्पावक्कूत्तु जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ‘चर्म कठपुतली खेल’ एक आनुष्ठानिक कला रूप है जिसका प्रदर्शन पालक्काड जिले के काली मंदिरों के वार्षिक त्योहारों में किया जाता है। इस खेल का मूल विषय कंब रामायण पर आधारित है जिसका वाचन ऐसी भाषा में किया जाता है जो मलयालम और तमिल भाषाओं की बोली संस्करणों में होता है। इस प्रदर्शन में भगवान श्री राम के जन्म लेकर अयोध्या में उनके राज्याभिषेक तक की घटनाओं का चित्रण किया जाता है। छाया नाटक का प्रस्तुतिकरण ‘कूत्तुमठम’ में किया जाता है जो एक बड़ी सी नाट्यशाला होती है जिसका निर्माण मंदिर परिसर में किया जाता है। कठपुतलियां भैंसों और हिरण के स्वरूप में होती हैं जिसमें भैंस बुरे चरित्र को और हिरण भले चरित्र को निरूपित करते हैं।
प्रत्येक कठपुतली औसतन 80 सेमी ऊंचाई की होती है और उन्हें विभिन्न मुद्राओं में तैयार किया जाता है।कठपुतलियों को कूत्तुमठम के एक सिरे से दूसरे सिरे तक बंधे लंबे सफेद पर्दे के पीछे व्यवस्थित किया जाता है। इसके पीछे, फटे हुए बांस के स्तंभ पर बाती वाले दीपकों की कतार होती है जो नारियल के खोपरे के अर्धभाग के अंदर जलते रहते हैं। इन दीपकों की रोशनी पर्दे पर कठपुतलियों की छाया बनाती है। मुख्य कठपुतली कलाकार को ‘पुलवर’ कहते हैं। वर्तमान में यह आनुष्ठानिक कला पालक्काड जिले के ओट्टप्पालमऔर कवलप्पारा के इलाकों में सिमट गई है।