एक सच्चे कलाकार के लिए संपूर्ण पृथ्वी की उसका कैनवास है। इस सरल विचार को इसके सार रूप में 40 दिन तक चलने वाले कलामेजुत्त त्योहार के दौरान देखा जा सकता है जो संपूर्ण गॉड्स ओन कंट्री (ईश्वर के अपने देश) के भगवती मंदिरों में मनाया जाता है। फर्श पर सुंदर कलाकृतियों के निर्माण हेतु कलाकार रंगबिरंगे पाउडरों को मिश्रित करते हैं जिसका उद्देश्य होता है भद्रकाली, अय्यप्पन, सर्प देवता या वेट्ट्क्कोरुमकन जैसे धरती के महान देवी-देवताओं को प्रसन्न करना और उनका पूजन करना। मंदिरों से लेकर कुलीन घरों तक में आप इन विशिष्ट कलकृतियों की रचना देख सकते हैं जिसके बाद कलामेजुत्तुपाट्टु नामक अनुष्ठान का आयोजन होता है। अनुष्ठान के अंत में इलत्तालं, वीक्कनचेंडा, कुझल, कोंबु और चेंडाजैसे वाद्ययंत्रों के वादन के साथ इन्हें मिटा दिया जाता है।
कलम, जिसे धूलिचित्रम या पाउडर ड्रॉइंग कहा जाता है, के निर्माण के लिए केवल प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। रंगों को पौधों या कुदरती वस्तुओं से प्राप्त किया जाता है, जैसे - चावल का आटा (सफेद), चारकोल पाउडर (काला रंग), हल्दी पाउडर (पीला रंग), हरी पत्तियों का पाउडर (हरा रंग) और हल्दी-चूने का मिश्रण (लाल रंग)। संपूर्ण प्रक्रिया में 2 घंटे का वक्त लगता है और इसे कभी-कभी ताड़ के पत्तों, लाल अड़हुल के मालाओं और तुलसी की पत्तियों से सजाया जाता है। परंपरा के अनुसार कलाकार कुरुप, तेय्यम्पाडी नम्बियार, तीयाडी नम्बियार और तीयाडी उण्णी समुदायों के होते हैं, और प्रत्येक की अपनी-अपनी विशिष्टताएं होती हैं। इन रचनाओं में विभिन्न भावनाओं का प्रदर्शन किया जाता है, मानो कलाकार उनमें अपनी आत्मा उड़ेल रहा हो।