कूत्तु एक सामाजिक-धार्मिक कला रूप है जिसका स्वतंत्र रूप से या कूटियाट्टम के अंग के रूप में प्रदर्शन मंदिर के कूत्तमबलमया कूत्तुतरा में किया जाता है। कूत्तु एक एकल नैरेटिव प्रदर्शन है जिसके बीच-बीच में स्वांग और हास्य प्रदर्शन के दौर चलते हैं। चाक्यार‘विदूषक’ या बुद्धिमान भांड की भूमिका करता हैं। महाकाव्यों (रामायण और महाभारत) के जरिए अपने अनोखे नैरेशन के जरिए चाक्यार अपने समय के मुद्दों पर व्यंग्य प्रस्तुत करते हैं। कोई भी व्यक्ति उनके व्यंग्य बाणों से बच नहीं सकता।उनकी व्यंग्य विदग्धता में श्लेष का द्विअर्थीपन संवाद और चुटीले ताने शामिल रहते हैं। कूत्तु के बीच-बीच में मिषावु जैसे आघात वाद्ययंत्र का वादन होता है।
नंगियारकूत्तु,कूत्तु का ही एक प्रकार होता है जिसका प्रदर्शन नांगियारों या चाक्यार समुदाय के स्त्री सदस्यों द्वारा किया जाता है। यह एकल नृत्य नाटिका है जो मुख्य रूप से श्री कृष्ण के आख्यानों पर आधारित होता है। श्लोकों का वाचन होता है और स्वांगों तथा नृत्य के जरिए उनकी व्याख्या होती थी। कूटियाट्टम के समान ही मुद्रा होती है लेकिन अधिक विशद। यह कला रूप अब भी तृश्शूर के वडक्कुन्नाथन मंदिर, अम्बलप्पुष़ाके श्री कृष्ण मंदिर, इरिंजालक्कुडाके कूडलमाणिक्यम और कोट्टयम के कुमारनल्लूर मंदिर में प्रदर्शित होती है।